
L19/Ranchi : राज्यसभा चुनाव 2012 के रिश्वतकांड मामले में संलिप्त झामुमो विधायक सीता सोरेन की तरफ से दायर क्रिमिनल रिट याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ समेत पांच न्यायाधीशों की बेंच में हुई। बेंच ने मामले में फिलहाल किसी तरह की रियायत सीता सोरेन को नहीं दी है। सीता सोरेन ने अपनी अपील में शीर्ष न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ के फैसले के आलोक में छूट देने की अपील की थी। पांच सदस्यीय पीठ ने पीवी नरसिंह राव बनाम सीबीआइ मामले में 1998 में कहा था कि सांसदों के सदन के भीतर कोई भी भाषण तथा वोट देने के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने से संविधान में छूट मिली हुई है।
इसको ही आधार बना कर सीता सोरेन ने राज्यसभा चुनाव 2012 में हुए हार्सट्रेडिंग मामले में छूट देने की अपील की थी। सीता सोरन पर राज्यसभा चुनाव में आरके अग्रवाल नामक उम्मीदवार का प्रस्तावक बनने और 25 लाख रुपये लेने का आरोप था। इस पर अपनी याचिका में सीता सोरेन ने दलील दी थी कि सांसदों को अभियोजन से छूट देनेवाले संवैधानिक प्रस्ताव के तहत उन्हें भी राज्यसभा चुनाव रिश्वत कांड से बरी किया जाये। शीर्ष अदालत ने सुनवाई के क्रम में यह टिप्पणी की कि जन प्रतिनिधियों को अपने फायदे के लिए राजनीति का इस्तेमाल पैसे के लिए नहीं करना चाहिए।
अदालत ने कहा कि अब इस मामले की सुनवाई सात सदस्यीय पीठ करेगी। हालांकि अटोर्नी जनरल आर वेंकटमणी ने 1998 के फैसले पर पुनर्विचार करने का विरोध किया। जानकारी के अनुसार तीन न्यायाधीशों वाली पीठ ने झामुमो सांसदों के रिश्वतखोरी मामले पर पुनर्विचार करने की बातें कही थीं। इसमें झामुमो सुप्रीमो और पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा पूर्व सीएम शिबू सोरेन के अलावा पार्टी के चार सांसद शामिल हैं। इन लोगों ने 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार के खिलाफ लाये गये अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में वोट देने के लिए रिश्वत ली थी।
सीबीआइ ने शिबू सोरेन और झामुमो के चार लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था। न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत अभियोजन से मिली छूट का हवाला देते हुए इसे रद्द कर दिया था। वहीं न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूढञ की अध्यक्षतावाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि मामलेको नये सिरे से देखने की जरूरत है।
