L19 DESK : तारीख 16 जनवरी, साल-2005। दिन के करीब सवा तीन बज रहे थे। तभी हाथों में हथियार लिए दो वर्दीधारी नक्सली बाइक से गिरिडीह जिले के सरिया का दुर्गी धवैया गांव पहुंचे। पहुंचते ही मार्शल जीप में सामने की सीट पर फायरिग की। इसके बाद चंद कदम चलकर पूछा कि महेंद्र सिंह कौन हैं? सामने गोली चली थी, यह देखने के बावजूद शख्स ने जवाब दिया, हां, मैं हूं महेंद्र सिंह। बंदूकधारियों ने यह सुनते ही बिना देर किए तीन गोलियों से उन्हें छलनी कर दिया। सुनने में यह बिल्कुल किसी फिल्मी कहानी की तरह लगता हैं। लेकिन यह बिल्कुल हकीकत है। आज महेंद्र सिंह की हत्त्या के 19 साल गुजर गए। मगर कौन थे महेंद्र सिंह?
गरीबों शोषितों के मसीहा थे कॉमरेड महेंद्र सिंह
झारखंड के भगत सिंह कहे जाने वाले बेहद चर्चित जन नेता और कम्युनिस्ट विधायक महेंद्र सिंह एक ऐसे राजनेता थे, जिन्होंने अपने हितों और कुर्सी के लिए कभी राजनीति नहीं की। वह गरीबों, दलितों, पिछड़ों और शोषितों के नेता थे. 1978 से उन्होंने सक्रिय राजनीति में आने के बाद अपनी एक अलग पहचान बनाई थी, जिस कारण वह एक जननायक के रूप में पहचाने जाते हैं. वह बिहार और झारखंड की राजनीति में मशहूर रहे हैं।
महेंद्र सिंह बगोदर विधानसभा क्षेत्र से 3 बार के विधायक रह चुके हैं। महेंद्र सिंह का जन्म 22 फरवरी 1954 को खंभरा में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के ही स्कूल से हुई। कम पढ़े लिखे होने के बावजूद किताबों और अखबारों से उन्हें बहुत लगाव था।अखबार तो उनके लिये एक नशा हुआ करता था। गजल, कविता, सिनेमा भी का भी उन्हें बड़ा शौक था। उनका जीवन सादगी से भरा था। बचपन और स्कूल दौर से ही वह अपने सामने गलत काम बरदाश्त नहीं करते थे।
ज़मींदारी प्रथा को किया जड़ से खत्म
महेंद्र सिंह ने अन्याय और शोषण के खिलाफ अपने गांव के लोगों को संगठित कर शोषकों और जमीदारों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। जमींदारी प्रथा को समाप्त भी किया। अपने गाँव खंभरा में ऐसे समाज का निर्माण किया, जिसमें गाँव के लडाई, झगड़े थाने न जाकर ग्राम सभा में निपटा लिए जाते थे। ऐसे कई उदाहरण हैं कि ग्राम सभा में लोगों को दंडित किया गया और महेंद्र सिंह के विचारों से प्रेरित होकर दंडित होने वाले शख़्स आज कई सरकारी और गैर सरकारी विभागों में कार्यरत हैं।
कैदियों के हक के लिये भी लड़ी लड़ाई
महेंद्र सिंह की लड़ाई केवल सड़कों या राजनीतिक गलियारों तक ही सीमित नहीं थी। एक बार हत्या के झूठे मुकदमे में जब उन्हें सलाखों के पीछे भेज दिया गया, तब उन्होंने जेल में रहकर कैदियों के अधिकारों के लिये भी लड़ाई लड़ी। इसका असर ये रहा कि कैदियों को सही और स्वच्छ खाना मिलने लगा। जहां कहीं भी वह अन्याय होते देखते, वहीं पर अपनी लड़ाई शुरु कर देते। यही कारण है कि उन्होंने बहुत कम समय में ही गरीबों, दलितों और शोषितों के दिलों में राज करना शुरू कर दिया था।
बगोदर से 3 बार विधायक रहे कॉमरेड महेंद्र सिंह
अपनी राजनीतिक जीवन में प्रवेश के बाद महेंद्र सिंह ने पहली बार बगोदर विधानसभा से 1985 में चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत उन्हें 1990 के चुनाव में ही हासिल हुई। वह पहली बार भाकपा माले से विधायक बने। इसके बाद तीन बार बगोदर विधानसभा का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया था। महेंद्र सिंह ने लोगों को राजनीतिक तौर पर इतना सजग कर दिया था कि चार साल के कार्यकाल में पंचायत में गड़बड़ियों के शायद ही कोई शिकायतें मिली। इस प्रयोग ने लोगों को एक सीख दी, सरकार की सबकुछ नहीं है। जनता है तो व्यवस्था है।
विधानसभा में पंचायती राज व्यवस्था के लिये वकालत की
विधानसभा पहुंचकर उन्होंने पंचायती राज व्यवस्था की भी वकालत की। भारत में पंचायती राज व्यवस्था को अनिवार्य रूप से लागू कराने में कॉमरेड महेंद्र सिंह की अहम भूमिका रही है। राजनीतिक दलों और सरकार के लिये पंचायती राज कभी मुद्दा नहीं रहा है। लेकिन महेंद्र सिंह पंचायतों को बदलाव के एक हथियार के तौर पर देखते थे। उन्हें समझ थी कि इससे गांव के गरीब मजदूर, किसान महिलाओं शोषितों को गोलबंद किया जा सकता है। उनके लगातार प्रयासों का असर ये रहा कि भारतीय संविधान में 73वां संशोधन कर पंचायती राज को पूरे देश भर में अनिवार्य रुप से लागू कर दिया गया।
19 साल गुजर गये महेंद्र सिंह की शहादत को
आखिरकार 16 जनवरी 2005 का वह दिन आया, जब उनकी मौत उनके सामने खड़ी थी, लेकिन मौत से भी नहीं डरे। उस समय महेंद्र सिंह अपनी बगोदर विधानसभा सीट से नामांकन दाखिल करने के दूसरे दिन दुर्गी धवैया में सभा करने पहुंचे थे। सभा समाप्त हो चुकी थी। अधिकांश लोग जा चुके थे। कुछ महिलाएं इंदिरा आवास, वृद्धा पेंशन जैसी अपनी समस्याएं उन्हें सुना रही थीं। तभी नक्सलियों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया।
मगर उनकी हत्या के बाद आज भी लोगों के मन में सिर्फ एक ही सवाल उठता है कि आखिर क्यों एक जननायक की इतनी निर्मम हत्या कर दी गई? क्योंकि उनके जाने से आज हजारों लाखों गरीब जनता का सपना अधूरा रह गया है। वह अपना सब कुछ लुटा सा महसूस करते हैं। महेंद्र सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनकी याद हमेशा झारखंड वासियों के साथ जुड़ी है। लोग उनकी शहादत को कभी नहीं भुला पाएंगे। उनकी कमी हर वैसे मोड़ पर महसूस होती रहेगी, जहां न्याय और अन्याय का सामना होगा। जहां गरीबों और शोषितों के हित के लिए लड़ने की जरूरत पड़ेगी। जहां जुल्म और भ्रष्टाचार अपनी सीमा लांघता दिखेगा।