L19 Desk : झारखंड का प्रतिष्ठित विनोबा भावे यूनिवर्सिटी, जिसे हम विद्या के मंदिर के रूप में जानते थे, वह भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है। विश्वविद्यालय के जिस पैसे से छात्रों की सुविधायें बेहतर होनी चाहिये थीं, उसी पैसे से काजू बादाम, लग्जरी फर्नीचर, महंगे फोन औऱ गाड़ियों के ईंधन पर लाखों रुपये फूंक दिये गये। 44 लाख का घोटाला सिर्फ एक ऑडिट रिपोर्ट में उजागर हुई है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शिक्षा के नाम पर मिलने वाला बजट किसी का ऐश-ओ-आराम बन चुका है ? पहले तो क्या है इस घोटाले की पूरी सच्चाई, आइये जानते हैं।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, 44 लाख रुपये का यह घोटाला यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी मुकुल नारायण देव के कार्यकाल में हुआ था। झारखंड सरकार के वित्त विभाग के अंकेक्षण निदेशालय ने यूनिवर्सिटी के कुलसचिव को ऑडिट रिपोर्ट सौंप दी है। रिपोर्ट में विश्वविद्यालय के कुछ अधिकारियों के शामिल होने की बात सामने आई है। फाइनेंस डिपार्टमेंट की रिपोर्ट से स्पष्ट है कि यूनिवर्सिटी में 44 लाख से भी अधिक का घोटाला हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक, मुकुल नारायण देव के कार्यकाल में उनकी कार्यशैली को लेकर कई प्रकार के सवाल उठते रहे, लेकिन पूर्व वीसी ने यूनिवर्सिटी में एक गुट बनाकर और अपने पहुंच के बल पर किसी प्रकार की जांच नहीं होने दी।
स्नैक्स, इलेक्ट्रोनिक्स में बेवजह खर्च हुए 8 लाख रुपये
रिपोर्ट में बताया गया है कि पूर्व वीसी के दफ्तर में स्नैक्स इत्यादि पर लगभग 8 लाख रुपये खर्च किए गए हैं, वह भी उस समय जब कोरोना के कारण लंबे समय तक यूनिवर्सिटी कार्यालय बंद पड़े थे, और लोगों की आवाजाही पर रोक लग चुका था। इसके साथ ही कुलपति आवास के रंग-रोगन पर बिना मतलब के लाखों रुपये खर्च किए जाने की बात सामने आयी है। इसमें रंग रोगन से संबंधित सामग्री की खरीद में अनियमितता पाई गई है। रिपोर्ट में कार्य की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाया गया है। इसी तरह निजी कामों के लिये बेवजह सरकारी वाहन का दुरुपयोग किया गया, लिहाज़ा फ्यूल की बर्बादी हुई।
इसके अलावा,पूर्व वीसी मुकुल नारायण देव के लिए इलेक्ट्रॉनिक सामान के अनावश्यक खरीद पर भी रिपोर्ट में आपत्ति दर्ज की गई है। यह भी पाया गया है कि 4 महीने के अंतराल में विश्वविद्यालय के पैसे से दो बार मोबाइल फोन खरीदा गया। कंप्यूटर की सुविधा रहने के बावजूद इस मद में भारी भरकम खर्च किए गए। भुगतान दुकान को न करके कुलपति महोदय को किया गया है। खरीदी गई चीजों की जानकारी स्टॉक रजिस्टर में दर्ज नहीं की गयी। इसी तरह कुलपति आवास में सीसीटीवी लगाए जाने में भारी भरकम अनियमित खर्च का भी खुलासा हुआ। और तो औऱ गलत तरीके से यात्रा भत्ता का लाभ लेने की बात भी उजागर हुई है।
फर्नीचर, महंगे मेडिकल उपकरण पर हुए फिज़ूल खर्च
यूनिवर्सिटी के वीसी के लिए एक अच्छा वाहन होने के बावजूद भारी भरकम खर्च कर एक नयी गाड़ी खरीदी गयी। यही नहीं, कुलपति आवास में पलंग, सोफा, वाशिंग मशीन आदि सामग्रियों की खरीद के साथ-साथ महंगे मेडिकल उपकरण आदि पर भी बेवजह पैसे उड़ाये गये। जांच में यह खर्च अनावश्यक एवं दोषपूर्ण पाया गया। बता दें कि यह जांच 2020 के जून से लेकर 2023 के मई महीने के बीच केवल कुलपति कार्यालय, कुलपति आवास और कुलपति के लिए इस्तेमाल होने वाली गाड़ी के फ्यूल पर खर्च पर की गई। अब इस मामले में अगर जांच पड़ताल का दायरा बढ़ता है, तो और भी बड़े घोटाले के उजागर होने की आशंका है।
इसमें यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह यूनिवर्सिटी के आंतरिक मद के आय से खर्च किया गया है जिसका इस्तेमाल विद्यार्थियों और उनके पठन-पाठन पर खर्च होना था, लेकिन वीसी रहे मुकुल नारायण देव ने इन पैसे को निजी ऐश ओ आराम के लिये खर्च किया। मामले की गहनता से जांच पड़ताल के बाद सभी अनियमित खर्चों की वसूली की बात कही गई है। वहीं, यूनिवर्सिटी द्वारा यह रिपोर्ट प्राप्त करने के एक महीने के भीतर राशि की वसूली करने और दोषियों की पहचान करते हुए उनपर कार्रवाई करके वित्त विभाग को सूचित करने को कहा गया है।
हालांकि, सोंचने वाली बात ये है कि अगर एक छोटे से ऑडिट में 44 लाख रुपये के घोटाले का खुलासा होता है, तो पूरी जांच में कितना बड़ा भ्रष्टाचार उजागर होगा। अब देखना होगा कि क्या सरकार इस मामले में सख्त कार्रवाई करती है, या फिर ये मामला भी कहीं फाइलों में दबकर रह जायेगा।