RANCHI : झारखंड हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में साफ कहा है कि किसी भी व्यक्ति पर स्पेशल मैरिज एक्ट लागू होने के बाद उसका व्यक्तिगत या धार्मिक कानून प्रभावी नहीं रहेगा। यह फैसला धनबाद के पैथॉलॉजिस्ट मोहम्मद अकील आलम के मामले में आया है, जिन्होंने पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी की थी। कोर्ट ने उनकी अपील खारिज करते हुए कहा – “स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने वाला व्यक्ति इस्लामी या किसी निजी कानून का हवाला देकर दूसरी शादी नहीं कर सकता।”
धनबाद के अकील आलम ने 4 अगस्त 2015 को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी की थी। कुछ ही महीनों बाद, 10 अक्टूबर 2015 को उनकी पत्नी घर छोड़कर देवघर चली गईं। आलम ने दावा किया कि पत्नी बिना कारण चली गईं और बार-बार बुलाने के बावजूद वापस नहीं लौटीं। उन्होंने देवघर फैमिली कोर्ट में वैवाहिक अधिकारों की बहाली की अर्जी दी। पत्नी ने जवाब में बताया कि अकील आलम पहले से शादीशुदा थे और उनकी पहली पत्नी से दो बेटियां हैं। उसने आरोप लगाया कि अकील ने उसके पिता पर संपत्ति अपने नाम कराने का दबाव बनाया और जब मना किया गया तो उसके साथ मारपीट की गई।
सुनवाई में अकील ने खुद स्वीकार किया कि उनकी पहली पत्नी जीवित हैं। अदालत ने पाया कि शादी के पंजीयन में यह तथ्य जानबूझकर छिपाया गया था। फैमिली कोर्ट ने दूसरी शादी को अवैध घोषित किया। बाद में अकील ने इसी निर्णय को झारखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी।
जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस राजेश कुमार की बेंच ने फैमिली कोर्ट का फैसला बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 4(ए) के अनुसार, विवाह तभी वैध है जब शादी के समय किसी भी पक्ष की पहले से जीवित पत्नी या पति न हो। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अधिनियम “नॉन ऑब्स्टांटे क्लॉज” के तहत बनाया गया है – यानी यह किसी भी अन्य निजी या धार्मिक कानून से ऊपर है।