L19 DESK : चाकुलिया के जिला परिषद डाक बंगला से रविवार को टोटेमिक कुड़मी/ कुर्मी समाज ने घाघर घेरा सह विशाल जन सभा कार्यक्रम के तहत कुड़माली भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने तथा कुड़मी जन जाति को एसटी का दर्जा देने को लेकर गाजे-बाजे के साथ रैली निकाली गयी। यह रैली मुख्य बाजार से होते हुए बिरसा चौक तक पहुंची। यहां पर भगवान बिरसा की मूर्ति पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी गयी।
बता दें की वहां से रैली डाकबंगला पहुंची और सभा में तब्दील हो गयी। रैली का नेतृत्व समाज के मुख्य संरक्षक शीतल ओहदार, मुख्य वक्ता पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा, प्रो़फेसर भुनेश्वर महतो,अमित महतो, झारखंड के हरमोहन महतो, हरि शंकर महतो, कोकिल चंद्र महतो, स्वपन कुमार महतो, मनोरंजन महतो, शतदल महतो, चंदन महतो, भूषण महतो, बादल महतो, नरेंद्र महतो, अनिल महतो आदि ने किया। रैली में शामिल सैकड़ों महिला और पुरुष जय गोराम का नारा लगा रहे थे।
रैली के पूर्व समाज के शहीदों की तस्वीरों पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी गई। सभा की अध्यक्षता झारखंड आंदोलनकारी हरिशंकर महतो ने की। सभा का संचालन स्वपन कुमार महतो ने किया। इससे पूर्व मुख्य वक्ता पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने कहा कि कुड़मी जनजाति को एसटी में शामिल किए बगैर ट्राईबल झारखंड राज्य बनाना असंभव है। कुड़मी और आदिवासी भाई-भाई हैं।
राज्य में आदिवासी 26 है और कुड़मी 24 हैं। दोनों को मिला दिया जाए तो यह संख्या 50 हो जाएगी । उन्होंने कहा कि कुड़मी जनजाति को एसटी में शामिल कराने के लिए उनका यह आंदोलन जारी रहेगा। चाहे उनका कितना भी विरोध क्यों ना हो। जनसभा में वक्ताओं ने कुड़मी जाति को एसटी में शामिल करने और कुड़माली भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने की बात कही। सभा के दौरान झूमर संगीत का भी आयोजन किया गया। मंच पर झारखंड आंदोलनकारियों को सम्मानित किया गया। मौके पर प्रद्युत कुमार महतो, घनश्याम महतो, शंख दीप महतो, नवीन महतो निर्मल महतो समेत सैकड़ों पुरुष और महिलाएं उपस्थित थे।
बता दें की अप्रैल महीने में भी हुआ था 5 दिन का आंदोलन। यह आंदोलन कुर्मी समुदाय को एसटी में शामिल करने की मांग लंबे समय से चली आ रही है । अभी अप्रैल महीने में ही पुरुलिया में कुर्मी समाज के लोगों का लंबा आंदोलन चला था। समुदाय के लोग 5 दिन तक विभिन्न रेलवे स्टेशनों और राज्य राजमार्गों में बैठ गए थे। इससे पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड के बीच सड़क और रेलमार्ग के द्वारा परिवहन पर काफी असर पड़ा था। कुर्मी समाज के रेल रोको आंदोलन की वजह से यातायात पर खास असर पड़ा था। सैकड़ों ट्रेनों को रद्द करना पड़ा था। कई मार्गों को अवरुद्ध किया गया।
1950 में एसटी के रूप में सूचीबद्ध किया गया था
बता दें कि झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा की 13 जातियों में से 12 जातियों को वर्ष 1950 में एसटी के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। हालांकि, कुर्मी समाज को इससे बाहर रखा गया था। बताया जाता है कि कुर्मी समुदाय पिछले 72 साल से अपने को एसटी सूची में शामिल करने की मांग करता आया है। अपनी मांग के समर्थन में कुर्मी समुदाय के बुद्धिजीवी लोग ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का हवाला देते हैं।
उनका कहना है कि उनकी संस्कृति, रीति-रिवाज और परंपराएं आदिवासी समाज वाली है। उनका आचार-व्यवहार भी वैसा ही है। कुर्मी समुदाय का यह भी तर्क है कि पहले वह एसटी सूची में ही आते थे लेकिन 1950 में उनको इससे निकाल दिया गया। कुर्मी समुदाय का मानना है कि एसटी में शामिल करके ही उनकी सांस्कृतिक, भाषाई और सामाजिक विरासत को सुरक्षित किया जा सकता है। वहीं कई आदिवासी संगठन इसका विरोध करते हैं।