क्या विधानसभा चुनाव के लिये आजसू 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति का मुद्दा भूल गयी है, क्या जातीय जनगणना कराने के लिये भाजपा मान गयी है ? क्या कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने को लेकर आजसू और भाजपा में डील हो गयी है ? दरअसल, झारखंड में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए आजसू ने ये तो क्लीयर कर ही दिया है कि वह एनडीए गठबंधन का हिस्सा बनकर ही इलेक्शन लड़ेगी, हो सकता है कि आने वाले दिनों में सीट शेयरिंग को लेकर फंसा पेंच भी सुलझ जाये, लेकिन बात विचारधारा और चुनावी मुद्दों पर आकर अटक जाती है। सवाल है कि क्या दोनों दलों में मुद्दों को लेकर सहमति बन पायेगी? ये सवाल इसलिये खड़े हो रहे हैं, क्योंकि आजसू की विचारधारा भाजपा से बिल्कुल उलट दिखायी देती है। स्थानीय नीति, जातीय जनगणना, कुड़मी को एसटी का दर्जा दिये जाने से संबंधित मुद्दों पर अकसर दोनों दलों में तकरार होती रही है। ये हाल साल 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद भी बखूबी देखने को मिला था। चुनाव गठबंधन के तहत को लड़ा गया था, लेकिन 5 सालों तक आजसू विपक्ष की भूमिका अदा करती रही। रघुवर सरकार बनने के कुछ समय बाद से ही आजसू 1985 खतियान आधारित स्थानीय नीति की खिलाफत पर उतर आयी थी। उस दौरान आजसू प्रवक्ता डा देवशरण भगत ने सवाल खड़े करते हुए कहा था कि जो 200 सालों से राज्य में रहे हैं, और जिन्होंने झारखंड से मैट्रिक की परीक्षा पास की है, दोनों की पात्रता स्थानीय नीति को लेकर एक ही कैसे हो सकती है। इस नीति में कई त्रुटियां हैं, जिसपर सरकार को मंथन करने की आवश्यकता है। वहीं, आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने कहा था कि स्थानीय नीति के लिये 1985 की तारीख का निर्धारण सही नहीं है, और इसे 1932 के खतियान के आधार पर किया जाना चाहिये, क्योंकि यह झारखंड के मूलवासियों की पहचान और अधिकारों से संबंधित है। 1985 वाली स्थानीय नीति को लेकर तो आजसू ने पूरे राज्य भर में “जन की बात” नामक अभियान चलाया था, जिसमें आजसू प्रमुख सुदेश महतो होते थे, और उनका लहजा भी आक्रामक हुआ करता था. उस दौरान 10 लाख पोस्टकार्ड्स तत्कालीन सीएम रघुवर दास को भेजे गये थे। इस नीति पर आजसू और भाजपा के बीच लगातार असहमति की स्थिति बनी रही, हालांकि, इसके बावजूद आजसू ने सरकार को समर्थन देना जारी रखा। इसके बाद हेमंत सोरेन की सरकार ने जब विधानसभा में 1932 खतियान से संबंधित बिल पेश किया, तो आजसू ने उसका समर्थन किया, आजसू का कहना था कि अगर हेमंत सरकार 1932 खतियान को स्थानीय नीति का आधार बनाकर इसे लागू करती है, तो आजसू पार्टी पूरा समर्थन करेगी. आपको बता दें कि आजसू शुरुआत से ही 1932 खतियान की पक्षधर रही है। लेकिन हाल के समय से परिस्थितियां बिल्कुल बदली हुई सी लग रही हैं। आजसू के बड़े बड़े नेताओं ने स्थानीयता को लेकर चुप्पी साध रखी है। तो क्या वाकई सुदेश महतो ने 1932 को छोड़कर 1985 आधारित स्थानीय नीति को अपना लिया है, या फिर उन्होंने भाजपा को 1932 के लिये मना लिया है ?
वहीं, जातीय जनगणना को लेकर भी दोनों दलों में असमंजस की स्थिति दिखायी देती है। चिराग पासवान की लोजपा, नीतिश कुमार की जेडीयू समेत केंद्र में एनडीए के घटक दलों ने एक ओर जहां जातीय जनगणना का खुलकर समर्थन किया है, वहीं आजसू भी हमेशा से कास्ट सेंसस की पक्षधर रही है। आजसू प्रमुख सुदेश महतो जातीय जनगणना को लेकर न सिर्फ सहमत रहे हैं, बल्कि पार्टी के अधिवेशन में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाते भी रहे हैं। जबकि एनडीए को लीड करने वाली दल भाजपा कभी जातीय जनगणना के समर्थन में नहीं रही है। हालांकि, पार्टी ने कभी इसका खुलकर विरोध भी नहीं किया है। मतलब भाजपा ने जातीय जनगणना को लेकर कभी अपना स्टैंड क्लीयर नहीं किया है। इस संबंध में इंडिया गठबंधन के नेता हमेशा से भाजपा को घेरते रहे हैं। उनका आरोप है कि भाजपा कभी जातीय सर्वेक्षण कराना ही नहीं चाहती। ऐसे में अब जब झारखंड में विधानसभा का चुनाव नजदीक है, तो क्या आजसू जातीय जनगणना वाले मुद्दे पर चुप्पी साधकर गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने वाली है ?
इसके अलावा, कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने वाली मांग भी आजसू के लिये एक सबसे बड़ा चुनावी एजेंडा रहा है। दरअसल, कुड़मियों की पार्टी कही जाने वाली आजसू शुरुआत से ही कुड़मी को एसटी में शामिल कराने की मांग पर मुखर रही है, ये पार्टी का चुनावी मुद्दा रहा है। हाल के समय से ये मांग जोरों पर है। हालांकि, केंद्र की भाजपा सरकार ने इस मुद्दे पर भी कभी अपना स्टैंड क्लीयर नहीं किया। तो ऐसे में सवाल ये है कि क्या आजसू अपने कोर एजेंडे पर भी चुप्पी साध लेगी ? क्या विधानसभा चुनाव के लिये आजसू ने अपनी विचारधारा से समझौता कर लिया है ? या फिर इन मुद्दों को लेकर सुदेश महतो ने भाजपा को मना लिया है ? अंदर की बात जो भी हो, लेकिन माना जा रहा है कि अगर झारखंड में बीजेपी की सरकार बनती है, तो हालात एक बार फिर से 2014 वाले खड़े हो सकते हैं। एक बार फिर से आजसू सत्ताधारी दल में रहते हुए विपक्ष की भूमिका अदा कर सकती है। वैसे इस पर आपका क्या विचार है, ये हमें कमेंट कर के जरूर बतायें।
क्या 1932, कुरमी आदिवासी, जाति जनगणना जैसे मुद्दे से भटक रही हैं आजसू ?
Leave a comment
Leave a comment