आखिर किसके प्रेम में झुक गये कोल्हान टाईगर ? क्या भाजपा में शामिल कराने के लिये किसी ने चंपई सोरेन पर दबाव बनाया है ? दरअसल, पिछले करीब 1 हफ्ते से चल रही झारखंड की राजनीतिक हलचल शांत पड़ गयी, जब चंपई सोरेन ने ऐलान कर दिया कि 30 अगस्त को वह भगवा धारण कर रहे हैं। हालांकि, इसके संकेत चंपई दा ने पहले ही दे दिये थे। बीते दिनों कोल्हान में एक सभा के दौरान उनके पोस्टर का रंग हरे से भगवा में तब्दील हो गया था। भाजपा में वह आधिकारिक रूप से शामिल भी नहीं हुए हैं कि अभी से ही वह मोदी– शाह के गुनगान गाना शुरु कर चुके हैं। इसी के साथ वह भाजपा के एजेंडे को भी धार देने में पीछे नहीं हैं। दरअसल, कल देर शाम को चंपई सोरेन ने एक पोस्ट के जरिये संथाल में बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण तेजी से बदलते डेमोग्राफी पर अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्य की बात है कि सिदो कान्हू जैसे वीरों, जिन्होंने जल जंगल जमीन की लड़ाई में अंग्रेजों की गुलामी स्वीकार नहीं की, आज उनके वंशजों की धरती पर ये घुसपैठिए कब्जा जमाये बैठे हैं। आगे वह लिखते हैं कि आदिवासियों एवं मूलवासियों को आर्थिक व सामाजिक तौर पर तेजी से नुकसान पहुंचा रहे इन घुसपैठियों को अगर रोका नहीं गया, तो संथाल परगना में हमारे समाज का अस्तित्व संकट में आ जायेगा। चंपई सोरेन ने ये भी कह दिया कि बांग्लादेशी घुसपैठ वाले मुद्दे पर मुझे केवल भाजपा ही गंभीर दिखायी देती है, जबकि अन्य पार्टियां वोट की राजनीति के कारण इसे नजरअंदाज करती रही है। कोल्हान टाईगर का कहना है कि वह बांग्लादेशी घुसपैठ वाले मुद्दे के कारण ही भाजपा का दामन थाम रहे हैं। हालांकि, जेएमएम में सालों से राजनीति करने के बावजूद चंपई सोरेन ने आजतक ये मुद्दा नहीं उठाया। तो क्या ये सब एक बहाना है, क्या चंपई सोरेन ने किसी के प्रेम जाल में फंसकर भाजपा में शामिल होने का फैसला किया है ? ये सवाल इसलिये क्योंकि जिस चंपई सोरेन ने शिबू सोरेन के साथ मिलकर झारखंड आंदोलन में हिस्सा लिया, अलग राज्य के लिये लंबी लड़ाई लड़ी, दिशोम गुरु के ही साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा को सींचा, संघर्ष में ही अपनी जवानी कुर्बान कर दी, आज वह उसी पार्टी से बगावत कर भगवा रंग कैसे ओढ़ सकते हैं। जिस जेएमएम में रहकर उन्होंने विधायक से लेकर मंत्री फिर मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया, क्या एक ही झटके में इस पार्टी के एक डिसीजन से वह इतने आहत हो गये कि विरोधी दल से नाता जोड़ लिया ? कहीं कोल्हान टाईगर पर किसी का दबाव तो नहीं,? कहीं चंपई को कोई इमोशनल ब्लैकमेल तो नहीं कर रहा था ?
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जेएमएम से भाजपा में भेजने की पूरी रणनीति चंपई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन ने ही तैयार की थी। वह लगातार भाजपाई नेताओं से संपर्क में थे, और अपने औऱ पिता के लिये राजनीतिक जमीन तलाश रहे थे। उन्हें मालूम था कि हेमंत सोरेन के जेल से वापस आते ही पिता चंपई सोरेन से सीएम की कुर्सी छीन ली जायेगी। इसलिये उन्होंने पहले से ही सारी तैयारियां कर रखी थी। वहीं, जब उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव के लिये जेएमएम के समक्ष अपनी दावेदारी पेश की, तो इसे पार्टी ने ठुकरा दिया। माने कि पिता की भी कुर्सी गयी, औऱ उन्हें भी कोई मौका नहीं मिला। हालांकि, हेमंत सोरेन 3.0 सरकार में चंपई सोरेन को वापस से मंत्री का दर्जा मिला, लेकिन इससे बाबूलाल सोरेन संतुष्ट नहीं थे। शेर के मुंह में खून लग चुका था, इसलिये अब उसकी प्यास पानी से नहीं बुझने वाली थी। ऐसे में बाबूलाल सोरेन ने भाजपा से उम्मीदें जतानी शुरु कर दी। उन्होंने भाजपा में शामिल होने के लिये शर्त रख दी कि अगर पार्टी चुनाव जीतती है, तो चंपई सोरेन को सीएम का फेस बनाया जाये, और बाबूलाल सोरेन को विधानसभा चुनाव में टिकट दिया जाये। हालांकि, सूत्र ये भी बताते हैं कि चंपई सोरेन खुद भाजपा में शामिल होने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन उनके बेटे बाबूलाल सोरेन लगातार उन पर दबाव डालते रहे। पुत्र मोह में आकर उन्होंने आखिरकार भाजपा में शामिल होने का फैसला किया। जेएमएम में रहकर उन्हें अपने बेटे का राजनीतिक करियर भी संवरता दिखायी नहीं दे रहा था।
अब सवाल ये भी है कि अगर भाजपा विधानसभा चुनाव के समय बाबूलाल सोरेन को टिकट देती है, तो उन्हें कौन सा सीट देगी ? अब तक मिली जानकारी के मुताबिक, बाबूलाल सोरेन कोल्हान के किसी दो सीटों में से एक पर अपनी किस्मत आजमायेंगे। ये दो सीटें पोटका और घाटशिला हो सकती हैं। लेकिन ज्यादा संभावना पोटका सीट को लेकर ही बन रही है। पोटका विधानसभा की अगर बात करें, तो इस वक्त यहां के विधायक जेएमएम के संजीव सरदार हैं। वैसे तो पोटका ही नहीं, पूरे कोल्हान रिजन में ही इंडिया गठबंधन का कब्जा है, खास कर जेएमएम का। लेकिन पोटका सीट पर जेएमएम और भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिलता रहा है। जेएमएम ने यहां आदिवासी वोट बैंक पर मजबूत पकड़ बनायी है, जबकि भाजपा ने गैर आदिवासी वोट बैंक की राजनीति की है। यहां आदिवासियों की संख्या निर्णायक भूमिका में है, लेकिन गैर आदिवासी खास कर ओबीसी की जनसंख्या भी अच्छी खासी है। यही वजह है कि साल 2000 से लेकर अब तक यहां पर भाजपा को 3 बार तक जीत मिलती रही है। जबकि झामुमो को यहां से मात्र दो बार ही जीत का स्वाद चखने का मौका मिला।। इस क्षेत्र में चंपई सोरेन का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। उनके बेटे बाबूलाल सोरेन भी बीते करीब 3,4 सालों से क्षेत्र में सक्रिय हैं। लगातार क्षेत्र का भ्रमण भी करते रहे हैं। राजनीतिक परिवार से ताल्लुक होने के कारण उनकी राजनीतिक समझ-बूझ भी बेहतर है, युवाओं के बीच उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है। ऐसे में इस बार देखना होगा कि अगर बाबूलाल सोरेन को भाजपा पोटका विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए टिकट देती है, तो पार्टी की उम्मीद पर वह कितने खरे उतर पायेंगे? वैसे आपकी इस पर क्या राय है, ये हमें कमेंट कर के जरूर बतायें।