L19/DESK : झारखण्ड सरकार राज्य के आदिवासियों को वन पट्टा देने में पिछड़ रहा है।बताते चलें कि पिछले चार सालों में महज 1271 लोगों को ही वन पट्टा दिया गया है,जबकि राज्यभर में वन पट्टा लेने के लिए 1,01,812 से अधिक आवेदन अभी भी लंबित हैं। राज्य में सबसे अधिक 58,053 आवेदन गुमला में लंबित है,ज्ञात हो कि झारखंड की तीन चौथाई आबादी गांव में रहती है।ऐसे में राज्य के आदिवासियों को वनपट्टा देने में देरी करना सोचने की बात है।
राज्य के वनाधिकार के मुद्दे पर काम करने वाले संगठनों के सर्वे के मुताबिक राज्य में एक करोड़ से अधिक लोग वनों पर निर्भर है और वो वनाधिकार कानून के लाभार्थियों के दायरे में आते हैं। वहीं, पिछले चार सालों में छत्तीसगढ़ सरकार ने करीब 80 हजार और ओडिशा सरकार ने 40 हजार से अधिक लोगों को वन पट्टा दिया है। मौजूदा सरकार ने वनाधिकार के मुद्दे को अपने चुनावी घोषणा पत्र में भी शामिल किया था, लेकिन वन पट्टा बांटने में वह पीछे रह गई है।वनाधिकार संगठन झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के संस्थापक संजय बसु कहते हैं कि सरकार को लगता है कि वन पट्टा बांटने से जंगल की जमीन खत्म हो जाएगी। वह खनन के लिए कंपनियों को जमीन उपलब्ध नहीं दे पाएगी। वन अधिकार कानून की तहत एक बार पट्टा देने के बाद जमीन वापस लेने के लिए ग्राम सभा से एनओसी लेने का प्रावधान है। इसलिए सरकार रुचि नहीं दिखा रही है। इधर, राज्य के कल्याण विभाग ने साल 2019 से केंद्र सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय काे वन पट्टा की रिपोर्ट नहीं भेजी है। विभाग को हर माह केंद्र काे रिपोर्ट देनी है कि कितने आवेदन मिले, कितनों को पट्टा दिया गया। मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक झारखंड ने मार्च 2019 से लेकर 31 मार्च 2023 तक एक भी पट्टा नहीं दिया है।
वनाधिकार संगठन झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के संजय बसु ने बताया कि राज्य की एक करोड़ से अधिक आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जंगलों पर निर्भर है, फिर भी आदिवासियों में वन पट्टा आवेदन को लेकर जागरूकता नहीं है। वहीं, बहुत सारे दावा पत्र सरकारी दफ्तरों से गायब भी कर दिए गए हैं। राज्य में 2012 के बाद से जेजेबीए की ओर से दावा पत्र जमा होता गया है। अबतक डेढ़ हजार गांवों का दावा पत्र जमा किया है। सभी की रिसीविंग है, पर आवेदन दफ्तरों से गायब हैं। झारखंड वन अधिकार मंच के संयोजक सुधीर पाल ने कहा कि झारखंड में पट्टाधारकों की संख्या नहीं के बराबर है। मंच ने 2019 में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के साथ वनाधिकार कानून के लाभार्थियों का सर्वे किया था। सर्वे के मुताबिक राज्य के 32,112 गांवों में से 14,850 जंगल से सटे हैं। यहां 18,82,429.02 हेक्टेयर वन भूमि पर वनाधिकार कानून के तहत दावों बनता है। इस क्षेत्रफल में रहने वाली आबादी 2,53,64,129 है, जिनमें 46,86,235 परिवार शामिल हैं।