L19 DESK : राजधानी रांची के भुंईहरी जमीन पर अट्टालिकाएं, बहुमंजिली इमारतें बनने का नया खेल वर्षों से जारी है। इसको बढ़ावा उपायुक्त रहे छवि रंजन और राय महिमापत रे के कार्यकाल में अधिक मिला। निलंबित आइएएस अधिकारी पूजा सिंङल के अवैध खनन, मनरेगा घोटाला और मनी लाउंड्रिंग मामले के प्रकाश में आने के बाद भुंईहरी जमीन की अवैध बंदोबस्ती का मामला तेजी से उभरा।
यह बातें तब सामने आयी जब पह्स अस्पताल से लेकर कई बड़े अपार्टमेंट बड़गाई अंचल के बरियातू मौजा के खाता संख्या 161, 152, 163, 164, 165 में बन गये। यहां पर फिलहाल मनोज कुमार अंचल अधिकारी हैं, ये अपनी पोस्टिंग से पहले ही विवादों में घिर गये. इनसे पहले अंचल के सीओ शैलेश कुमार थे। अंचल के हल्का कर्मचारी भानू प्रताप समेत अन्य ने प्रमंडलीय आयुक्त नीतिन मदन कुलकर्णी द्रारा मांगी गयी रिपोर्ट को दबा दिया।
बड़गाई अंचल में ही सेना की जमीन है। इसे 25 करोड़ में कारोबारी विष्णु अग्रवाल ने खरीदा है। फरवरी 2018 में कारोबारी विष्णु अग्रवाल ने महुआ मित्रा और संजय कुमार घोष से 3.75 एकड़ जमीन खरीदी। इस जमीन के बदले 24.37 करोड़ रुपये का भुगतान किया। जमीन सिरमटोली चौक के पास थी। दावा किया गया जमीन भारतीय सेना के कब्जे में है। विष्णु अग्रवाल ने जमीन की रजिस्ट्री के आधार पर जमीन पर दावा किया।
रांची में भारतीय सेना का महत्वपूर्ण बेस है, जमीन दलालों ने जमीन के एक बड़े हिस्से पर कथित रूप से कब्जा कर लिया था और धोखे से जमीन बेच दी गयी। आरोप है कि जमीन की खरीद-बिक्री से संबंधित मामला पूर्व डीसी छवि रंजन के संज्ञान में था और उनकी सहमति से यह किया गया। जानकारी के अनुसार बड़गाई अंचल के बरियातू मौजा में लॉ विस्टा अपार्टमेंट, रचित हाईट्स, राम प्यारी सुपर स्पेश्यलिटी अस्पताल, पल्स अस्पताल, हेल्थ प्वाइंट, बरियातू पेट्रोल पंप, रिलायंस फ्रेश और अन्य प्रोपर्टी है। नियमों के अनुसार भुंईहरी नेचर की जमीन का उपयोग विशेष प्रयोजन के लिए दिया जाता है।
इसके लिए डीसी के परमिशन की आवश्यकता होती है, जिसके आधार पर जमीन का पट्टा तैयार होता है। टर्म औऱ कंडीशन जमीन के उपयोग के अनुसार स्पष्ट की जाती है और इसे मानने की बाध्यता भी स्पष्ट है। यदि भूंईहरी जमीन पर स्कूल बना है और वह बंद हो जाता है, तो जिस व्यक्ति को स्वीकृति मिली है, वह उसका दूसरे चीजों के लिए उपयोग नहीं कर सकता है और न ही जमीन की खरीद या बिक्री हो सकती है। 1869 में 2482 भुंईहरी मौजा के लिए कानून बनाया गया था।
छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) एक्ट 1908 में भी भुंईहरी अधिकार को बनाये रखा गया और इस जमीन की खरीद बिक्री पर रोक लगायी गयी। छोटानागपुर टेन्योर एक्ट 1869 में बनाया गहया, जिसमें भुंईहरी परिवारों की जमीनों को संजोये रखने की बातें कही गयी। भुंईहरी जमीन के मालिक वे परिवार हैं, जिनके पूर्वज वर्षों से जंगल साफ कर अपनी जमीन को आबाद किया और उसे खेती लायक बनाया।
साथ ही अपने अलावा अन्य लोगों को बसाया। जब अंगरेजों ने इन इलाकों को देखा, तो सभी जमीन को जमींदारों की जमीन समझने की भूल की, जिसको लेकर अंगरेजों और भुंईहरी परिवारों के बीच कई संघर्ष भी हुए।