L19/Ranchi : राजधानी रांची में स्थित राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) में मरीजों की मौत की संख्या में इजाफा आया है। इस साल जनवरी से लेकर जुलाई तक में ही विभिन्न कारणों से करीब 3500 मरीजों की मृत्यु हो गयी। रिम्स के रेफरल पेशेंट रिकॉर्ड में दर्ज आंकड़ों के अनुसार, करीब 35% मौतें ऐसी हैं, जिसके लिये रिम्स या उसके चिकित्सक जिम्मेदार नहीं हैं। अस्पताल के चिकित्सकों का कहना है कि निजी अस्पतालों में 15 से 20 दिन तक भर्ती रखने के बाद मरीजों को ऐसी स्थिति में रिम्स रेफर किया जाता है, जिसमें उनकी जान के बचाना करीब करीब असंभव होता है।
क्या कहते हैं डॉक्टर?
डॉक्टरों के मुताबिक, निजी अस्पतालों से 7 महीने में 6851 मरीजों की स्थिति बिगड़ने पर रिम्स रेफर किया गया, जिनमें से 1285 मरीजों की मौत इलाज के दौरान हुई। इनमें लगभग 220 मरीजों की हालत इतनी बदतर थी कि अस्पताल पहुंचने के एक घंटे के अंदर ही उसकी मौत हो गयी। वहीं 490 रोगियों की मृत्यु 24 घंटे के भीतर और बाकि 575 मरीजों की मौत 72 घंटे या उसके बाद हो गयी।
वहीं, रिम्स प्रबंधन के मुताबिक, केवल जुलाई भर में ही 1139 मरीजों की स्थिति गंभीर होने के कारण रिम्स रेफर किया गया था। रिम्स प्रबंधन की ओर से दिये गये पूर्व अस्पताल विवरण के मुताबिक, इन सभी रोगियों का औसतन 15 दिनो तक विभिन्न निजी अस्पतालों में इलाज चल रहा था। रिम्स में भर्ती करने के बाद इनमें से 185 मरीजों की मृत्यु हो गयी। इनमें 85 की मौत भर्ती होने के 24 घंटे के अंदर ही हो गयी। वहीं, 27 लोगों ने 48 घंटे के अंदर और 73 लोगों ने 72 घंटे के अंदर अपनी अंतिम सांसे ली।
2 केसों से समझें कैसे बढ़ा है मौत का आंकड़ा
अनगड़ा के मरीज राकेश को सैमफोर्ड अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इस अस्पताल में लगभग 23 दिन भर्ती रहने के बाद मरीज की स्थिति बिगड़ने लगी। अस्पताल वालों ने 11 लाख का बिल थमाकर मरीज को रिम्स ले जाने को कह दिया। रिम्स में भर्ती होने के 5 घंटे के अंदर ही उसकी मौत हो गयी।
वहीं, चान्हो के एक मरीज कमल किशोर को पेशाब की दिक्कत के बाद सिटी ट्रस्ट अस्पताल में भर्ती किया गया था। सर्जरी के 5 घंटे के बावजूद मरीज की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया। परिजन रिम्स के ट्रॉमा सेंटर पहुंचे। यहां भर्ती करने के 12 घंटे के भीतर ही उसकी मृत्यु हो गयी।