L19 DESK : नई दिल्ली में शनिवार को नीति आयोग गवर्निंग काउंसिल की बैठक में सीएम हेमंत सोरेन ने झारखंड की तीन भाषाओं कुडुख, हो और मुंडारी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग रखी। हेमंत सोरेन ने कहा कि इससे आदिवासी व मूलवासी बच्चों को उनकी ही भाषा में शिक्षा मिल पाएगी। झारखंड सरकार आदिम जनजाति एवं अनुसूचित जनजाति की भाषा के विकास के लिए जल्द ही एकेडमी भी बनाने वाली है।
सीएम ने आगे कहा कि खनन में प्रोस्पेक्टिंग लाइसेंस प्रक्रिया में बदलाव प्रस्तावित है, जिसके कुछ प्रावधान अल्पाधिकार को बढ़ावा देंगे। उन्होंने इनपर पुनर्विचार पर बल दिया। उन्होंने कहा कि वन संरक्षण नियमावली 2022 का गठन किया गया है। इसमें ग्राम सभा के अधिकार को खत्म कर दिया गया है। इस पर पुनर्विचार होना चाहिए।
वही विभिन्न कोल कंपनियों पर 1.36 लाख करोड़ रुपये बकाया भुगतान झारखंड को कराने का आग्रह प्रधानमंत्री मोदी से किया।
जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की मांग
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नीति आयोग की बैठक में अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्ग को जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण की मांग की है। उन्होंने कहा कि झारखंड ने नियुक्तियों में आरक्षण बढ़ाने के लिए विधेयक पास कर राज्यपाल को भेजा था, लेकिन उन्होंने उसे आपत्तियों के साथ वापस कर दिया। सरकार आपत्तियों को दूर कर विधेयक पास करने की कार्रवाई कर रही है।
नेशनल हाई-वे का हो कंस्ट्रक्शन
राज्य की आठ प्रमुख सड़क कॉरिडोर को नेशनल हाईवे में विकसित करने में केंद्र सरकार से सहयोग मांगा है। उन्होंने अपने अभिभाषण के जरिए से जनकल्याण, इंफ्रास्ट्रक्चर, एमएसएमई, रोजगार, महिला सशक्तिकरण, युवा, स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास के क्षेत्र में किए जा रहे प्रयासों से भी अवगत कराया।
सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि झारखंड में राष्ट्रीय उच्च पथ घनत्व को राष्ट्रीय औसत के बराबर लाने के लिए कुल आठ प्रमुख सड़क कॉरिडोर (1662.50 किमी) को चिन्हित किया है। इन राजकीय पथों को राष्ट्रीय उच्च पथों में विकसित किये जाने से झारखंड में उत्तर से दक्षिण एवं पूरब से पश्चिम कनेक्टिविटी सुदृढ़ कि जाएगी।
ग्रामसभा को वन संरक्षण का मिले अधिकार
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि वन संरक्षण नियमावली 2022 का गठन किया गया है जिसमें ग्राम सभा के अधिकार को लगभग गौण कर दिया गया है। इस पर पुनर्विचार करना चाहिए। नहीं तो राज्य के आदिवासी और वनवासी धीमे-धीमे पूरी तरह से विलुप्त हो के कगार पर आ जाएंगे।
वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के भी कई प्रावधानों को बदलने की प्रक्रिया चल रही है। कई ऐसे प्रावधानों को शामिल करने का कोशिश कर रही है । जिससे पर्यावरण को भविष्य में भारी नुकसान होने की आशंका है। ऐसा होने पर जंगल का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।