L19 DESK : आदिवासी सेंगल अभियान के नेतृत्व में आज से मरांग बुरु बचाओ सेंगल यात्रा की शुरुआत (पारसनाथ पहाड़, गिरिडीह जिला) की गई। इस विषय पूर्व सासंद व सेंगल अभियान के अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा की हम आदिवासियों का प्रथम अधिकार है। जो 1911 के प्रिवी काउंसिल, लंदन द्वारा जैनों के खिलाफ और संताल आदिवासियों के पक्ष में हुए फैसले से स्थापित होता है। अतः संबंधित अधिकारी अभिलंब इसकी पुनर्वापसी करें। मरांग बुरु अर्थात आदिवासियों का ईश्वर है। अतः हमारे ईश्वर, धर्म, आस्था, विश्वास पर कुठाराघात हम आदिवासियों के मानवीय और संवैधानिक अधिकार पर हमला है।
अतः हमारी मांग है सभी संबंधित सरकारों और संस्थाओं द्वारा आदिवासियों का सम्मान और संरक्षण करें। मरांग बुरु वापस करें। मरांग बुरु और सिंज चंदो (सूरज) को प्रकृति पूजक आदिवासियों अर्थात सरना धर्म का चिन्ह और प्रतीक झंडा स्वीकार किया जाता है। मगर दूसरे प्रचलित सभी झंडों का स्वागत और सम्मान है।
भारत सरकार और सभी राज्य सरकारें सरना धर्म कोड को अभिलंब मान्यता दे। अन्यथा 30 दिसंबर 2023 भारत बंद रहेगा। रेल रोड चक्का जाम करने का काम करेंगे। आगे उन्होंने कहा की दुनिया भर के आदिवासियों के लिए पहाड़- पर्वत आदि देवी- देवता और भगवान समान हैं। अतः मरांग बुरु, लुगु बुरु, अयोध्या बुरु आदि की सुरक्षा और संवर्धन के लिए इन्हें आदिवासियों को सौंप दिया जाए। यह प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षार्थ भी जरूरी है।
हर वर्ष मरंग बुरु सेंगल यात्रा का आयोजन होगा : सालखन मुर्मू
आदिवासी सेंगेल अभियान (ASA) प्रतिवर्ष मरांग बुरु बचाव सेंगेल यात्रा का मधुबन में आयोजन करेगा। जिसमें स्थानीय संगठन- मरांग बुरू सवंता सुसर वैसी का सहयोग लेता रहेगा। आदिवासी प्रकृति-पर्यावरण, वन्य प्राणी, पशु- पक्षी एवं अन्य मानव समुदाय के साथ शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का पक्षधर है। अतः आदिवासी समाज जैन धार्मिक समाज के खिलाफ कोई हिंसक मनोभावना नहीं रखता है। हम केवल न्याय और शांति चाहते हैं।
22 दिसंबर 1855 और 22 दिसंबर 2003 के ऐतिहासिक विजय को सेंगेल हासा – भाषा जीतकर माहा अर्थात हासा भाषा विजय दिवस सर्वत्र मनाने का संकल्प लेता है। क्योंकि महान वीर शहीद सिदो मुर्मू के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष एवं बलिदान का प्रतिफल 22 दिसंबर 1855 को संथाल परगना देश और संताल परगाना कानून स्थापित हुआ था। उसी तर्ज पर पूर्व सांसद और संताली भाषा मोर्चा के अध्यक्ष सालखन मुर्मू के नेतृत्व में लंबे संघर्ष और आंदोलन से 22 दिसंबर 2003 को संथाली भाषा आठवीं अनुसूची में शामिल हुआ है। 22 दिसम्बर 2023 दुमका में आयोजित है।
सरना धर्म कोड की मान्यता मामले पर मान्य प्रधानमंत्री का उलिहातू दौरा और महामहिम राष्ट्रपति का बरिपदा दौरा बेकार साबित हुआ है।प्रकृति पूजक आदिवासियों को धार्मिक आजादी से वंचित रखने के लिए कांग्रेस और बीजेपी सर्वाधिक दोषी हैं। सेंगेल क्षोभ और चिंता व्यक्त करता है। आदिवासी एकता, आंदोलन और संविधान- कानून प्रदत्त अधिकारों को हासिल करने में आरक्षित सीटों से जीतने वाले अधिकांश आदिवासी जनप्रतिनिधि ( एमएलए, एमपी, मंत्री, मुख्यमंत्री आदि ) बेकार साबित हो रहे हैं।
अधिकांश आदिवासी जन संगठन भी उनकी दलाली कर समाज को गुमराह कर तोड़ने में क्रियाशील हैं। आदिवासी स्वशासन व्यवस्था ( ट्राइबल सेल्फ रूल सिस्टम) में अभिलंब जनतांत्रिक और संवैधानिक सुधार अनिवार्य हैं। क्योंकि यह परंपरागत वंशानुगत व्यवस्था भी आदिवासी समाज में आदिवासी समाज- सुधार लाने और गांव- समाज में एकजुटता बनाने में अब तक बिल्कुल असफल साबित हुआ है। अंततः नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा, वोट की खरीद बिक्री, धर्मांतरण आदि जारी है।