L19 DESK : पहाड़ सा शरीर, चट्टान सा सीना, 4 मार्च, 2007 को अंधाधुंध गोलियां चली और वो पहाड़ गिर गया और उस पहाड़ का नाम था सुनील महतो. 14वीं लोकसभा के सदस्य रहते हुए जमशेदपुर के सांसद, कुड़मियों के महान और सबसे बड़े तथा चहेते नेता सुनील महतो की हत्या होने और इस घटना के 17 साल बीत जाने के बाद भी आज तक इस हत्या की पहेली सुलझ नहीं पाई.
आज झाऱखंडी आंदोलनकारी, जमशेदपुर के सबसे लोकप्रिय सांसद रहे शहीद सुनील महतो की जयंती है. बता दें 11 जनवरी, 1966 को सरायकेला खरसावां के गांव छोटा गम्हरिया में जन्मे सुनील महतो एक राजनेता और आंदोलनकारी थे. वह झारखंडी क्रांतिकारी निर्मल महतो के बड़े भाई थे. पिता का नाम गणेश महतो और माता का नाम खांदू महतो था. सुनील महतो की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई. और आगे की पढ़ाई उन्होंने जमशेदपुर के कोपरेटिव कॉलेज से की थी.
गरीब किसान परिवार में जन्मे सुनील महतो अपने लोगों की दर्द तकलीफों को अच्छी तरह से जानते थे. छात्र जीवन से ही राजनीति में रुचि रखने वाले सुनील महतो हमेशा लोगों के बीच रहकर उनकी समस्याओं को सुन कर उसे दूर करने का प्रयास करते थे. वहीं, उनसे मिलने आए लोगों को कभी किसी तरह की अप्वाइंटमेंट की जरूरत नहीं पड़ती थी. जिसे जब भी जरूरत होता, उनसे मिलकर अपनी समस्या बता सकता था. चाहे कोई भी वक्त हो वे हमेशा जनता की सेवा करने के लिए तत्पर रहते थे.
बता दें जनता के बीच रहकर उनकी भलाई करना ही सुनील महतो की जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद था. वे छात्र जीवन से ही सबसे मिलकर समस्याओं का समाधान तो करते ही थे, लेकिन जब वो एमपी यानी सांसद बनें, उसके बाद भी उनकी यही सोच बरकार रही थी. सुनील महतो अपने पास हमेशा दो मोबाइल फोन रखा करते थे. एक फोन जिससे वो लोगों की समस्याएं सुनते थे और दूसरे फोन से उन समस्याओं को दूर करने के लिए जरूरी निर्देश दिया करते थे. लोगों से उन्हें इतना लगाव था की आधी रात तक बाहर ही रहते थे. और इसे लेकर जब उनकी पत्नी सुमन महतो उन्हें टोकती थीं, तो उनका हमेशा से यही जवाब होता था की आज वे जो भी है सिर्फ और सिर्फ जनता की वजह से ही हैं, इसलिए उनके बीच रहना उनकी पहली जिम्मेदारी है. और इस तरह से वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए तत्पर रहते थे. उन्होंने आजीवन गरीबों, शोषितों के हक अधिकार के लिये लड़ाई लड़ी, और यही लड़ाई उनकी जीवन के अंतिम समय तक जारी रहा.
उनके राजनीतिक जीवन की बात करें तो उन्होंने इसकी शुरुआत आजसू पार्टी से की थी. आगे चलकर उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा का दामन थाम लिया और झामुमो की टिकट से ही उन्होंने साल 2004 में जमशेदपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और बड़ी जीत हासिल की थी.
वहीं, अपनी लोकप्रियता और नेतृत्व क्षमता के कारण वह पार्टी में लगातार आगे बढ़े. उनमे सबसे खास बात यह थी की वे राजनीति में रहने के बावजूद हमेशा अपने क्षेत्र की जनता के लिए रहने वाले सांसद के तौर पर जाने जाते थे.
जिसके बाद आया वो काला दिन, 4 मार्च, 2007 की वह तारीख, जब उनको घाटशिला के बाघुड़िया में फुटबाल मैच के दौरान मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था. जहां नक्सलियों के द्वारा उनपर कई गोलियां चलाकर हत्या कर दी गई. आखिर सुनील महतो की हत्या क्यों हुई? और कौन लोग इस साजिश के पीछे थे? आखिर ऐसा क्या हो गया कि सुनील महतो को हमेशा के लिए मौत की नींद में सुला दिया गया? बता दें इन सभी सवालों का जवाब आज भी जमशेदपुर सहित झारखंड की हर एक जनता जानना चाहती है. लेकिन इन सभी सवालों का जवाब देने के लिए कोई सामने नहीं आ रहा.
वहीं, सांसद बनने के बाद सुनील महतो की पत्नी सुमन महतो ने भी इस हत्याकांड के कारणों का कई बार, पता लगाने का काफी प्रयास तो किया, लेकिन अब तक इस हत्या की मिस्ट्री सुलझ नहीं पाई. एक तरफ पति की हत्या का मामला अब तक सुलझा भी नहीं की पिछले दिनों सुमन महतो की बड़ी बेटी का भी निधन हो गया, वे अब काफी टूट चुकी हैं.
वहीं, अंत में हमारा एक सवाल है जिसे झारखंड की जनता आज भी जानना चाहते हैं की आखिर सांसद सुनील महतो की हत्या क्यों हुई और इस पर अब तक क्या कार्रवाई हो पाई है.और उनके इस निर्मम हत्या के पीछे की वजह क्या है?