कांके विधानसभा में सरकारी दावे तो मानो इस कदर होते है कि अब यह विधानसभा राज्य के बांकि विधानसभा के लिए नाजिर बन कर उभरेगा| यहां जिम्मेवारों ने विकास की रोशनी प्रदेश के कोने-कोने में पहुंचाने का वादा भी किया था| लेकिन 4 साल बाद भी जमीनी हकीकत झूठे दावों से कोसों दूर है| झारखंड की राजधानी रांची के ही सुदूर इलाकों के कई ऐसे गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा है| ऐसा ही राजधानी रांची से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर कांके प्रखंड के ऊपरी कोनकी पंचायत का कतरिया बेड़ा गाँव है|गांव तक पहुंचने के लिए पुल और सड़क मार्ग का घोर अभाव है।आज़ादी के बाद भी पुल नहीं बनने से बरसात के मौसम में पहाड़ों और जंगलों से घिरे इस गांव का संपर्क राज्य के अन्य हिस्सों से टूट जाता है| वहीं पहाड़ और जंगलों के बीच सालों से जारी यह सफर बयां करने के लिए काफी है कि इस राज्य में विकास के वादों की जमीनी हकीकत क्या है| बताया जाता है कि इस पंचायत में पुल नहीं रहने से करीब 15 गांवों में से 6 गांव सबसे अधिक प्रभावित हैं और यह गांव मुश्किलों का सामना कर रहा है
आज भी नदी को पार करते हैं लोग
इन गांव तक गाड़ी तो जाना दूर लोगों का पैदल पहुंचना मुश्किल हैं, क्योंकि पहाड़ और जंगल के दुर्गम और पथरीले रास्ते से कोई पहुँचता भी हैं तो उसका सफर इस नदी पर आकर थम जाता है|इसके उपरांत फिर इस नदी को पार करने के बाद पहाड़ पर मौजूद गांवों तक पथरीला रास्ता सफर को और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण बना देता है|स्थिति ऐसी है कि करीब 1500 की आबादी अपनी हर जरूरत के लिए इस नदी को पार कर रहा है| अभी बारिश के दिनों में जब नदी ऊफान पर रहती है, तब लोग अपना जान जोखिम में डाल कर इस नदी को पर करते हैं।
वर्षों पुरानी हैं पुल की मांग
ग्रामीण बताते हैं की राढ़ा और ऊपरी कोनकी पंचायत के बीच पुल बनाने की बहुप्रतीक्षित मांग उन लोगों की ओर से वर्षों पहले से की जा रही है| जिससे की लोगों का शहर से संपर्क सरलता से हो सके| गांव के बुजुर्गों कहते हैं कि बचपन में उन्होंने अपनी गांव की जो तस्वीर देखी थी, आज बुढ़ापे में भी वही नजारा है|सरकारें आईं और गईं, लेकिन गांवों की सूरत ना पहले बदली थी और ना ही आज बदल पाई है|