l19/DESK : झारखण्ड के नेता-मंत्रियों को फिलहाल तो डूब के ही मर जाना चाहिए उन सबके होते हुए भी राज्य के हजारों छात्रों का भविष्य खतरे में आ गया है। सरकार भले लाख दावें कर ले और भले ही राज्य की शिक्षा- व्यवस्था जहन्नुम में चली जाए पर मंत्री -विधायक के बेटे-बेटियां लाखों फ़ीस देके बड़े-बड़े संस्थानों से शिक्षा लेने के नाम पर और पैसों के तर्ज पर बड़े-बड़े गाड़ियों और महंगे-महंगे मोबाइल फोन लेके अईयास्सीयां करें, लेकिन वही विधायक-मत्रियों को भारी मतों से जीताकर विधायक बनाने वाले उन आम नागरिकों के बच्चों की स्कूली शिक्षा की अगर हम बात करें तो इसके एकदम ही विपरीत रहती है।
हर साल सरकार शिक्षा की बेहतरी के लिए बड़े-बड़े वादे ,दावे करती हैं और अपनी उपलब्धियां गिनाती फिरती है कि हमने सैकड़ो उत्कृष्ट विद्यालय खोले,हमने फालना काम किया ढेकना काम किया..लेकिन जब आप धरातल पर देखिएगा तो आज भी हजारों गरीब बच्चे अपनी मूलभूत आवश्यकता यानी शिक्षा से कोसों दूर हैं। मैं ऐसा इसलिए भी कह रही हूं क्योंकि ऐसी ही एक आंकड़ा कोल्हान प्रमंडल के पश्चिमी सिंहभूम जिले से निकलकर आई है जहां पर 52000 से भी अधिक बच्चे आज भी अपनी प्राथमिक शिक्षा से वंचित हैं।
जिसके बारे में हम आज इस खबर के माध्यम से आपको बताने जा रहें हैं दरअसल ,हम बात कर रहे पश्चिमी सिंहभूम में सरकारी विद्यालयों कि, जहाँ एस्पायर के इस वर्ष के सर्वेक्षण के अनुसार पश्चिम सिंहभूम जिला के 16 प्रखंडो में 6-14 वर्ष के 32,932 बच्चे और 15-17 वर्ष के 18,596 बच्चे विद्यालय से बाहर पाये गये हैं।वहीँ इस सर्वेक्षण में बताया गया कि जिले के 1030 से भी अधिक ऐसे टोले हैं। जिसमें प्राथमिक विद्यालय एक किलोमीटर से अधिक तथा 1017 टोले ऐसे हैं, जिसमें मध्य विद्यालय 3 किलोमीटर से भी अधिक दूरी पर है। साथ ही 2106 ऐसे टोले हैं,जिसमें उच्च विद्यालय 5 किलोमीटर से अधिक दूरी पर स्थित है। वहीँ जिले में इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के विद्यालयी शिक्षा से दूर होने के कारण विद्यालय से टोले की अधिक दूरी, आधार कार्ड, बैंक पासबुक, जाति प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र का नहीं होना, साथ ही साथ पारिवारिक, समाजिक, आर्थिक स्थिति कमजोर, जागरुकता की कमी, विद्यालय में शिक्षक की कमी के साथ साथ संसाधनों का आभाव आदि दर्जनों कारण बताये गये हैं ।
ये तो सोचने वाली बात है की आधार कार्ड, बैंक पासबुक, जन्म प्रमाण पत्र के कारण यदि बच्चे विद्यालय से दूर हैं तो यह काफी चिंता का विषय है। अब इन बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ना किसकी जिम्मवारी है आपको जानकारी के लिए बता दें यह क्षेत्र में मुंडा मानकी व पंचायती राज व्यवस्था है और यहाँ के आधे से जाएदा बच्चे शिक्षा से वंचित हैं इस बात पर कोई दोराय नहीं है की जहाँ भी आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्ग के लोग रहते हैं उनकी स्थिति हर क्षेत्र में दयनीय ही रहती है।
आपको बताते चले की झारखंड में अगर हम शिक्षा की प्रतिशत का बात करें तो यहां पर आदिवासी 50% से भी कम पढ़े लिखे पाए जाते हैं ऐसे में कोल्हान प्रमंडल के इस आदिवासी बहुत क्षेत्र में 50000 से अधिक बच्चे अपने मूलभूत आवश्यकता यानी प्राथमिक शिक्षा से दूर हैं तो फिर यह सरकार और प्रशासन के लिए बहुत गंभीर एवं चिंता का विषय है और इस पर हमें और आपको भी सोचने की जरूरत है साथ ही साथ यहाँ के अधिकारी ,मंत्री पर भी यह एक बड़ा सवाल है क्यूंकि इतने दिनों से आज तक यहाँ की शिक्षा- व्यवस्था बहुत ही ख़राब चल रही और आज तक कोई सुधार नहीं हो पाया है। आखिर में यहाँ लापरवाही किसके तरफ से हो रही है और लापरवाही हो भी रही है तो इसमें सबसे जायदा नुकसान तो इन मासूम बच्चों को ही उठाना पड़ रहा है अपनी स्कूली शिक्षा से वंचित होकर ।