सादरी भाषा में एक कहावत है खाय ले खुदी नाइ और सरई में डेरा वर्तमान समय में यह बात झारखण्ड सरकार पर एकदम सटीक बैठता हैं | याद कीजिए साल 2019 में जब jmm की नई –नई सरकार बनी थी और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन छाती पीट-पीट कर मिडिया में कह रहे थे कि पूर्व की रघुवर सरकार ने सरकारी खजाना में कुछ नही छोड़ा, सब खाली है राज्ये कैसे चलेगा, जनता के लिए विकास का काम कैसे होगा |अब देखिये झारखण्ड सरकार के पास पिछले 4 सालों में इतना पैसा हो गया है कि एक कार्यक्रम को कराने के लिए करोड़ों का टेंडर निकला जाता हैं आयोजन के लिए जिन जिन चीजों की छति हुई है उसे फिर से ठीक करने के लिए करोड़ों का टेंडर फिर से निकालती जाता हैं और कुल मिलाकर उस कार्यक्रम में भी करोड़ों रुपये खर्च कर दिया जाता | भई पैसा भी छोड़ दीजिए ,सिर्फ एक कार्यक्रम के लिए पेड़ –पौधों को काटकर,उखाड़कर तहस – नहस कर ,सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है |
इतने सारे हिट्स के बाद मुझे लगता है आप लोग समझ ही गए होंगे कि मै किस कार्यक्रम की बात कर रहा हूँ और नहीं समझे है तो बता देती हूँ|अरे वही विश्व आदिवासी दिवस जो पिछले साल जेल मोड़ स्थित बिरसा मुंडा स्मृति पार्क में झारखण्ड सरकार द्वारा मनाया गया था,याद आया और बड़े शान से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन मंच में चीख – चीख कर बड़ी बुलंदी के साथ राज्यवासियों से कह रहे थे-आप सभी को विश्व आदिवासी दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ,हम आदिवासी जंगलों और पेड़ –पौधों को बचाने वाले हैं क्यूंकि प्रकृति है तो आदिवासी है| वहीँ दूसरी ओर उसी मंच के पीछे उखाड़े और फेकें गए पेड़ –पौधे भी चीख –चीखकर ये कह रहे थे कि हमें काटकर ये कैसा आदिवासी दिवस मनाया जा रहा है|
खैर ये सब थी पिछले साल यानि 2023 की बात | इस साल भी झारखण्ड सरकार कुछ ऐसा ही करने जा रही है |पिछले 2 सालों से झारखण्ड सरकार विश्व आदिवासी दिवस को बृहद तरीके से मना रहा है इसे लेकर राजधानी रांची के किसी एक हिस्से में 3 दिनों तक झारखण्ड सरकार रंगारंग कार्यक्रम आयोजित कराती है|इसे और बड़ा रूप प्रदान करने के लिए पिछले साल से देश के अन्य राज्यों के आदिवासी कलाकारों की टीमों को भी आमंत्रित किया जा रहा है | साल 2022 में पहली बार मोराबादी में तीन दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया था उस वक़्त इसे झारखण्ड जनजातिय महोत्सव का नाम दिया गया ,जो पिछले साल बदलकर झारखण्ड आदिवासी महोत्सव हो गया |
जिला प्रशासन ने इस साल भी बिरसा मुंडा स्मृति पार्क में आगामी 9 अगस्त को होने वाले विश्व आदिवासी दिवस पर समाहरोह आयोजित करने का फैसला लिया है | इस फैसले से फिर से एक बार करोड़ों रुपये कर्च कर तैयार किया गया पार्क बर्बाद हो सकता है बार – बार हम करोड़ रुपये – करोड़ रुपये क्यों कह रहे हैं इसे समझिये |
पूरे 34 एकड़ में फैले इस जेल परिसर के सुन्दरीकरण में लगभग 156 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं | दो दिवसीय झारखण्ड आदिवासी महोत्सव मनाने के लिए पिछले साल लगभग 4-5 करोड़ रुपये खर्च किये गए ,लेकिन ये सिर्फ सरकारी आकड़ों में था ,सूत्रों की माने तो सिर्फ दो दिनों में लगभग 15 करोड़ रुपये झारखण्ड सरकार ने खर्च किये थे|
पार्क में पूरे प्रोग्राम को सेट करने के लिए दिल्ली के एक इवेंट कंपनी को हायर किया गया था |उस वक़्त कंपनी के कर्मचारियों ने पार्क में लगे सैकड़ों पेड़-पौधों को उखाड़ कर फेक दिया,लोगो के बैठने के लिए बनाये गए मंडप तक को नही छोड़ा गया ,पार्किंग के ऊपर लगाये गए सफ़ेद रंग के बड़े – बड़े गमलों को हटाने के दौरान तोडा गया, क्रेन और पोकलेन से पौधों को रौंदा गया ,साथ ही साथ अंडरग्राउंड पार्किंग तक को छतिग्रस्त किया गया था ,जब कुछ स्थानीय लोगो ने विरोध किया तो कंपनी वालों ने कहा कि पौधों को हटाकर सुरक्चित किया जा रहा है लेकिन यह सिर्फ बर्बादी थी और यह बर्बादी इस साल भी होगी | इस बार पार्क परिसर में लगाये गए विशाल थम्ब इम्प्रेशन को भी धवस्त करने की तैयारी है | लाखों खर्च कर लगाये गए इस थम्ब इम्प्रेशन को धवस्त करने के बाद दोबारा लगाना बहुत मुश्किल होगा |
बर्बादी का एक वीडियो हमने भी आपको दिखाया था ,तब कुछ लोगो ने कमेंट्स किया कि सरकार दुसरे समुदास के कार्यक्रम में पैसे खर्च करती है तब ठीक,आदिवासी समुदाय के लिए करे तो बर्बादी| इसमें बात सिर्फ पैसों की नही है, बात है आदिवासियों के नाम पर होने वाले पैसे की लुट और पेड़ – पौधों की बर्बादी का |अब आप ये सोचिये कि बिरसा मुंडा स्मृति पार्क ही क्यों ? इस इवेंट के लिए ,यह कार्यक्रम मोराबादी या फिर हरमू मैदान में भी किया जा सकता है जहाँ न तो पेड़-पौधे है और न ही कार्यक्रम करने के लिए तोड़ फोड़ की जरुरत है| लेकिन इन मैदानों में अगर कार्यक्रम हुए तो इवेंट के नाम पर करोडो के टेंडर पास कैसे होंगे ,सरकारी विभाग के अफसरों के जेब कैसे भरेंगे और मै सवाल करना चाहती हूँ झारखण्ड सरकार से कि बिरसा मुंडा स्मृति पार्क में करोड़ों के कार्यक्रम हो सकते है तो उस पार्क के बाहर हमारी आदिवासी महिलाये सालों से हदिया बेच कर अपना परिवार पाल रही हैं उनको रोजगार क्यों नही दे सकते |प्रोग्राम के दिन बड़े बैनर लगाकर सच्चाई से मुह नहीं मोड़ सकते आप ,लेकिन इनकी बात करेंगे तो सरकार के पास इन चीजो के लिए पैसे नहीं होते | चलिए पिछले साल आदिवासी दिवस के नाम पर खुद आदिवासी संगठनों ने भी इतनी बर्बादी के बाद भी एक आवाज नही उठाई,देखते हैं इस बार कोई इसपर आवाज उठता है या नहीं, या फिर आदिवासी दिवस पर होने वाले इस लुट और बर्बादी पर अपनी मौन सहमती देते हैं