L19 DESK : आज आदिवासी समाज मरणासन्न है, रोज मर रहा है। उसका हासा, भाषा, जाति, धर्म, रोजगार, इज्जत, आबादी और संविधान- कानून प्रदत्त अधिकार लुट, मिट रहा है। बचाने के लिए आदिवासी समाज में एकजुटता और निर्णायक जन आंदोलन की घोर कमी है। अतएव आदिवासी सेंगेल अभियान ने पूर्व सांसद सालखन मुर्मू के नेतृत्व में एकता की नई सोच और कार्ययोजना के मार्फत आदिवासी समाज को गांव-गांव में एकजुट करने का संघर्ष तेज किया है। सेंगेल का एकता की नई धारा और नारा है – “आदिवासी समाज को बचाना है तो पार्टियों की गुलामी मत करो, समाज की बात करो।
जो सरना धर्म कोड देगा, आदिवासी उसको वोट देगा।” आदिवासी समाज के नाम पर आरक्षित सीटों से चुने गए आदिवासी एमएलए/ एमपी और पंचायत प्रतिनिधि आदि अधिकांश आदिवासी समाज से ज्यादा पार्टियों की गुलामी करते हैं और समाज की अवहेलना करते हैं। उसी प्रकार अधिकांश आदिवासी जन संगठन भी समाज की अपेक्षा पार्टियों और नेताओं का परिक्रमा करते हैं। आदिवासी स्वशासन व्यवस्था के अगुवा भी गांव-समाज को एकजुट करने में विफल हैं। अतः पार्टियों और उसके वोट बैंक को बचाने की अपेक्षा अब आदिवासी समाज को बचाना ज्यादा जरूरी है। अन्यथा आदिवासी समाज को बर्बाद होने से बचाना मुश्किल है। आज की मीटिंग सरायकेला जिला के राजनगर प्रखंड के अन्तर्गत आराहासा गांव में हुई।
जिसकी अध्यक्षता सुन्दर बानरा ने किया। गांव के कई लोग कारखानों से काफी परेशान थे। लोगों का कहना था कि उन्हें जमीन के बदले न ही पैसा मिला और न ही नौकरी। प्रदूषण से जीवन बेहाल है और हवा में उड़ने वाले धूल से खेती पर भी बहुत बुरा असर पड़ रहा है। फैसला हुआ कि कारखानों को लाने वाली सरकार ही है अत: कारखानों के साथ गलत जनप्रतिनिधियों का एकजुट होकर विरोध करना होगा। सर्वसम्मति से तय हुआ कि रूंगटा सीमेंट कंपनी नहीं बनने देना है, जमीन नहीं देना है। सेंगेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने कहा आदिवासी एकता और आंदोलन ही बचने-बचाने का समाधान है। मगर एकजुटता बनाने के रास्ते में दोस्त और दुश्मन को पहचाना भी जरूरी है। आज की सभा में मानकी मुंडा संघ जिलाध्यक्ष झारखंड बोदरा, आदिवासी हो समाज युवा महासभा जिलाध्यक्ष विष्णु बानरा, आदिवासी हो समाज महासभा कोषाध्यक्ष सुंदर बानरा, गणेश गागराई, फागू मुर्मू, सुगनाथ हेंब्रम, सोनाराम सोरेन, तिलका मुर्मू एवं अन्य शामिल थे।