L19 DESK : झारखंड में धनरोपनी के समय खेतों में गाए जाने वाले ऐसे लोकगीत अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं। पहले रोपा शुरू होते ही खेतों में चारों ओर रोपनी के गीत गूंजने लगते थे। ग्रामीणों का मानना था कि रोपनी के समय लोकगीत गाने से भगवान इंद्र खुश होते हैं, किसानों में उत्साह जगता है और खेती-किसानी का वातावरण तैयार करने में मदद मिलती है। लोकगीत के हिमायती और उम्रदराज किसान भी रोपनी के समय गीतों को नहीं गाये जाने को लेकर काफी चिंतित हैं। रोपनी गीतों के विलुप्त होने का मुख्य कारण लोग समाज में तेजी से आ रहे बदलाव को मानते हैं। नये दौर की महिलाएं अब खेतों में इस तरह के लोकगीतों को गाने या गुनगुनाने में संकोच करतीं हैं। वहीं कुछ किसान इसके विलुप्त होने का कारण लगातार पड़ रहे अकाल को भी मानते हैं। रोपा के समय खेतों में गाए जाने वाली लोकगीत कर्णप्रिय होते थे। इन लोक गीतों का उद्देश्य और मान्यता चाहे जो हो, लेकिन इसमें अपने क्षेत्र की सलामती के लिए प्रार्थना, भगवान इंद्र को खुश करने की भावना और संबंधित क्षेत्रों तथा गांवों की सभ्यता व संस्कृति का समावेश कूट-कूट कर भरा होता था। इन गीतों से खेतों में काम करने वाले किसानों को ऊर्जा मिलती थी। लेकिन बदलते समय का असर अब रोपनी गीतों पर भी पड़ने लगा है, जो एक चिंता का विषय हैं।
धनरोपनी के समय खेतों में गाए जाने वाले लोकगीत अब धीरे-धीरे हो रहे हैं विलुप्त
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