L19 DESK : हमारे झारखंड राज्य के नेता, मार्क्सवादी चिन्तक और धनबाद के पूर्व सांसद रहे एके राय की चौथी पुण्यतिथि आज है। आज ही के दिन 21 जुलाई को उन्होंने आखरी सांसे ली थी। भ्रष्टाचार और अन्य गलत कामो से दूर रहकर राय दा ने असंभव कार्य को संभव बना कर अपने धनबाद लोकसभा क्षेत्र से 3 बार संसद बने थे। आज हम उनके जीवन कि सादगी, विचार धारा और झारखंड आन्दोलन में उनकी भूमिका पर प्रकश डालेंगे।
एके राय की कुछ अनसुनी बातें :-
एके राय का जन्म पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के राजशाही जिला अंतर्गत सपुरा गांव में 15 जून 1935 में हुआ था। वह केमिकल इंजीनियर बनकर धनबाद आए थे। बाद में कोयला मजदूरों की पीड़ा और शोषण से व्यथित होकर आंदोलनकारी बन गए। देखते-देखते धनबाद के कोयला खदानों वाले इलाकों में राय दा की तूती बोलती थी। उनके द्वारा चलाये गये मजदुर आंदोलनों और माफियाओं के विरोध अभियान की देश विदेश में चर्चा थी। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से अपने राजनीती की शुरुवात करने वाले एके राय पहले सिंदरी के खाद कारखाना में केमिकल इंजिनियर थे।
राय दा ने शादी नहीं की। अपना घर परिवार नहीं बसाया। अपनी सारी जिंदगी मजदूर और सर्वहारा की लड़ाई में झोंक दी। आज की पीढ़ी के लिए इस बात पर यकीन करना मुश्किल होगा कि राय दा जिन मजदूरों का प्रतिनिधित्व करते थे वे उन्ही की तरह का सादगी पूर्ण जीवन भी जीते थे। इसी कारण वे टायर का चप्पल पहनते थे। तिन बार सांसद रहने वाला व्यक्ति इस तरह से अपना जीवन यापन करता है, कोई सोच भी नही सकता था। राय दा अपने इमानदारी के लिए जाने जाते थे। एक तरफ अधिकतर नेता अपनी सुविधाओं को बढ़ने के लिए हमेशा एक पैर आगे रखते है, वहीँ राय दा ने सांसद के रूप में पेंशन और किसी भी प्रकार की अन्य सुविधायें लेने से इनकार कर दिया था।
उन्होंने माकपा से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई जिसका नाम जिसका नाम मार्क्स वादी समन्वय समिति था। हालांकि, उनका मजदूर संगठन बिहार कोलियरी कामगार यूनियन सीटू से संबद्ध है। एक खपड़ैल के घर में बिना बिजली के जिंदगी गुजार देनेवाले राय दा के प्रशंसक उनके विरोधी भी रहे हैं। राय दा की वामपंथी विचारक के रूप में पहचान रही है। वह बड़े अंग्रेजी अखबारों में लेख भी लिखते थे। छत्तीसगढ़ के किसान-मजदूर नेता शंकर नियोगी गुहा राय दा के समकालीन भी रहे। कोयलांचल में पहलवानों के जोर से मजदूर आंदोलन के नाम पर ठेकेदारी और चंदाखोरी करनेवालों को राय दा के आंदोलन के कारण विवश हो कर पीछे हटना पड़ा था। 70 के दशक में राय दा ने शिबू सोरेन और बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड अलग राज्य के आन्दोलन को गति दी थी। झारखंड मुक्ति मोर्चा के गठन में भी राय दा का महत्वपूर्ण योगदान रहा था।