L19 DESK : आज है 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस यानी International Day of the World’s Indigenous Peoples …. तो आइए इस विशेष दिन के बारे में जानते है कि आखिर इस दिन को मनाया क्यूँ जाता है और इसको मनाने का मकसद क्या है? जैसा की हम सभी जानते हैं पूरे विश्व में जो मूल निवासी हैं उन्हे आदिवासी के नाम से जाना जाता है। आदिवासी दो शब्दों के मेल से बना है आदी+वासी जिसका अर्थ होता है मूलवासी यानी विश्व के वैसे लोग को आदिकाल से इस धरती पर निवास करते आ रहे हैं, उन्हे हम आदिवासी या मूलवासी की संज्ञा देते हैं।
यदि हम आंकड़ों के आधार पर देखे तो विश्व के 195 देशों में से 90 देशों में आदिवासी निवास करते हैं,जहां 5000 अलग अलग समूहों में इनकी आबादी 40 करोड़ के पार पाई जाती है और 7000 के आसपास इनकी अपनी भाषा है। विश्व के सातों महादेशों की तुलना करे तो सबसे ज्यादा आदिवासियों की संख्या अफ्रीका महादेश में पाई जाती है। वही भारत की बात करे तो 2011 जनसंख्या के आधार पर कुल आबादी का 8.6 प्रतिशत यानी 10 करोड़ जनसंख्या आदिवासियों की है। भारत में मध्यप्रदेश, उड़ीसा छतीसगढ़, झारखंड,महाराष्ट्र,राजस्थान,बंगाल,पूर्वोत्तर राज्य असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम मणिपुर,दक्षिणी राज्य आंध्रप्रदेश, केरल तमिलनाडु जैसे राज्यों में आदिवासी पाए जाते हैं।
आदिवासियों की पहचान उनके जल, जंगल, जमीन के प्रति प्रेम, रीति-रिवाज,रूढ़िवादी परंपरा और अपनी अलग जीवनशैली के लिए की जाती है। दूसरे विश्व युद्ध में भीषण जान-माल की नुकसान ने पूरे वर्ल्ड को हिलाकर रख दिया था,जिसके कारण लोगों में मानवाधिकार की चिंता उभरने लगी थी,इसी वैश्विक चिंता ने पूरे विश्व को एक मंच पर आने के लिए मजबूर किया,जिसके परिणाम स्वरूप वर्ष 1945 में यूएनओ यानी संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई। UNO ने विश्व में शांति स्थापना से लेकर विभिन्न सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक क्षेत्र में लोगों की मूलभूत अधिकारों की रक्षा हेतु महत्वपूर्ण कदन उठाए।
विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को ही क्यों मनाया जाता है ?
इस बीच विश्व में अपनी दुनिया को अपनी अनोखी संस्कृति से खूबसूरत बनाने वाले आदिवासी समुदाय को अपना अस्तित्व बचाने के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ रहा है। निरंतर उनके संसाधनों पर पूँजीपतियों का ध्यान रहता है विकास के नाम पर आदिवासियों को विस्थापित किया जा रहा है। उदारीकरण, जलवायु परिवर्तन,नस्लभेद,वर्ग भेद ,रंगभेद जैसे कई कारणों के चलते आदिवासियों को अपनी अस्तित्व और सम्मान बचाने के लिए निरंतर संघर्ष करना पड़ रहा है| इसी संघर्ष को मद्देनजर रखते हुए यूएनओ ने 9 अगस्त 1994 को प्रतिवर्ष अन्तर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। इस दिन विश्वभर में आदिवासी समुदाय के लोग, आदिवासी संगठन और संयुक्त राष्ट्र व कई देशों की सरकारी संस्थानों के द्वारा परिचर्चा, नाच-गान और सामूहिक समारोह का आयोजन किया जाता है | 9 अगस्त 1995 को पहली बार विश्व आदिवासी दिवस का आयोजन वैश्विक स्तर पर किया गया था | यह दिवस दुनियाभर में आदिवासियों का सबसे बड़ा दिवस है |
आदिवासी दिवस मनाने के पीछे संयुक्त राज्य अमेरिका के आदिवासियों की सबसे बड़ी भूमिका है | अमेरिकी देशों में 12 अक्टूबर को कोलम्बस दिवस मनाने की प्रथा है, जिसका वहां के आदिवासियों ने घोर विरोध करते हुए उसी दिन आदिवासी दिवस मनाना शुरू किया | उन्होंने सरकारों से मांग किया कि कोलम्बस दिवस के जगह पर आदिवासी दिवस मनाया जाना चाहिए क्योंकि कोलम्बस उस उपनिवेशी शासन व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसके लिए बड़े पैमाने पर जनसंहार हुआ है | यह मामला संयुक्त राष्ट्र पहुंचा | अमेरिकी देशों के आदिवासियों के साथ हुए भेदभाव के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से 1977 में जेनेवा में एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया | इस सम्मेलन में कोलम्बस दिवस को हटाकर उसके जगह पर आदिवासी दिवस मनाने की मांग की गई | इस तरह से यह मांग जोर पकड़ता गया |
आदिवासियों ने 1989 से आदिवासी दिवस मनाना शुरू कर दिया, जिसे काफी समर्थन मिला | अंततः 12 अक्टूबर 1992 को अमेरिकी देशों में कोलम्बस दिवस के जगह पर आदिवासी दिवस मनाने की परंपरा शुरू हो गई | इसी बीच संयुक्त राष्ट्र ने आदिवासी अधिकारों को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय कार्यदल का गठन किया, जिसकी प्रथम बैठक 9 अगस्त 1982 को जेनेवा में हुआ | संयुक्त राष्ट्र ने 1994 को आदिवासी वर्ष घोषित किया | 23 दिसंबर 1994 को संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1995 से 2004 को प्रथम आदिवासी दशक घोषित किया तथा आदिवासियों के मुद्दे पर 9 अगस्त 1982 को हुए प्रथम बैठक के स्मरण में 9 अगस्त को प्रतिवर्ष आदिवासी दिवस मनाने की घोषणा की |