हेमंत सोरेन की राह अब आसान नहीं, क्या होगा विधानसभा चुनाव में?
Jharkhand:हेमंत सोरेन एक बार फिर से मुख्यमंत्री तो बन गये हैं, लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में उनकी राह आसान नहीं होने वाली है. राज्य की कमान संभालते ही हेमंत सोरेन को अपने 4 साल की नाकामियों पर आलोचना का सामना करना पड़ सकता हैं. विधानसभा चुनाव में उनकी रिपोर्ट कार्ड निकाली जायेगी, जिसमें उनके नीति नियम प्रस्तावों पर मूल्यांकन किया जायेगा. उनकी एल बार फिर मुख्यमंत्री बनते ही कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
विधानसभा चुनाव हेमंत के लिए चुनौती
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सरकार का तख्तापलट हुआ औऱ जीत मिली झामुमो कांग्रेस राजद माले वाली यूपीए गठबंधन को, जो कि अब इंडिया गठबंधन हो गया है। हेमंत सोरेन के नेतृत्व में नयी सरकार बनी। शुरुआत से ही सरकार से लोगों को खूब उम्मीदें थीं, खासकर छात्रों को, कि रघुवर दास सरकार की खामियों को हेमंत सरकार दूर करेगी। सरकार के सामने रोजगार एक अहम चुनौती थी। इसे लेकर कई वादे भी किये गये थे, लेकिन समय के साथ साथ हेमंत की सरकार भी रोजगार के मुद्दे पर घिरती नजर आयी। हालांकि, सरकार के पास तब ये कहने के लिये जरूर था कि उनका छोटा सा कार्यकाल कोरोना महामारी के वजह से प्रभावित हुआ, लेकिन कोरोना खत्म होने के बाद एक बार फिर से नीतियों के कारण उनकी सरकार घिरती दिखायी दी। हालांकि, हेमंत सोरेन ने चुनावी एजेंडे में स्थानीयता को मुद्दा बनाकर रोजगार के मुद्दे को साधने का प्रयास किया था। इसके तहत उन्होंने 1932 खतियान आधारित स्थानीयता और इसी में नियोजन नीति को शामिल करते हुए बिल सदन में पेश किया था, जो कि विधानसभा से पारित भी हुआ, लेकिन कई कारणों से ये कानून में तब्दील नहीं हो पाया, और आज तक अटका पड़ा है। मतलब राज्य में आजतक न कोई स्थानीय नीति है, न ही नियोजन नीति बन पायी है। हालांकि, सरकार की ओर से करीब 10 हजार नौकरियां दी गयी। लेकिन बेरोजगारी की दशा को देखकर ये संख्या बहुत छोटी लगती है। वहीं, हेमंत सोरेन सरकार ने 50 हजार सहायक शिक्षकों की नियुक्ति की घोषणा की थी, लेकिन सहायक शिक्षकों ने ही इसका जमकर विरोध किया। इसमें कुछ पेंच फंस रहा था, जिसे लेकर वे नाराज थे, हालांकि, उनकी नाराजगी भी दूर नहीं की गयी। इसके अलावा, पंचायत स्वयंसेवक संघ की भी अपनी शिकायतें रहीं, काफी लंबे समय से वे विरोध प्रदर्शन करते रहे, जिनका कोई उपाय नहीं किया गया।
चार साल का कार्यकाल में
चार सालों में सरकारी नौकरियों की बात करें तो झारखंड कर्मचारी चयन आयोग ने अब तक केवल 10,041 लोगों को नियुक्ति दी. जबकि 44 हजार से अधिक नियुक्ति प्रक्रिया में है.जेपीएससी के अंतर्गत 1033 लोगों को नियुक्ति मिली है. जबकि 16 हजार से अधिक पदों पर प्रक्रिया जारी है. यानी साढ़े 4 साल में कुल 11 हजार 74 लोगों को सरकारी नौकरी मिली है और 59 हजार से अधिक पदों पर नौकरियां प्रक्रियाधीन है. इनमें से कई की परीक्षा हो चुकी है तो कई विभाग की परीक्षा अभी भी बाकी है. इनमें से सबसे बड़ी परीक्षा जेएसएससी सीजीएल अभी भी बाकी है. अभ्यर्थी इसे लेकर कई बार आंदोलन कर चुके हैं. जनवरी में इसकी परीक्षा राज्य के विभिन्न जिलों में आयोजित की गयी थी लेकिन पेपर लीक होने के कारण इसे भी रद्द करना पड़ा.
पेपर लीक वाली कहानी तो हालांकि, बहुत पुरानी है। राज्य में जब कभी कोई सरकारी एग्जाम आय़ोजित होती है, उससे पहले QUESTION पेपर लीक हो जाता है, और फिर एग्जाम्स कैंसल करने पड़ते हैं। फिर सालों तक एग्जाम्स कंडक्ट नहीं कराये जाते। इस सरकार में भी स्थिति में कुछ बदलाव नजर नहीं आय़ा। हालांकि, इस साल के जनवरी महीने में उनकी गिरफ्तारी के बाद से उनकी सरकार की नाकामियां कहीं छिप गयी। और जब चंपई सोरेन की सरकार बनी, तो उनकी कार्यशैली और बेदाग छवि के वजह से रोजगार का मुद्दा सतह पर नहीं आय़ा। लेकिन हेमंत सोरेन के वापस सत्ता की कमान संभालने के बाद उन्हें अपनी ही नेतृत्व वाली पिछली सरकार की नाकामियों का सामना करना पड़ सकता है। इस बार के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन की सरकार के सामने रोजगार सबसे बड़ी चुनौती है, और इसका फायदा मिलेगा विपक्षी दल भाजपा को। भाजपा के लिये इस चुनाव को लेकर एक बड़ी रणनीति सरकार की नाकामियों को उजागर करना है।
दूसरी तरफ, हेमंत सरकार की ओर से 2022-23 के दौरान राजनीतिक रुप से जिन महत्वपूर्ण विधेयकों जैसे सरना धर्म कोड, खतियान आधारित स्थानीयता बिल, ओबीसी आरक्षण बढ़ाने, म़ॉब लिंचिंग निषेध से संबंधित बिल आदि को सदन से सर्वसम्मति से पारित किया गया था, उसे लागू होना अब भी बाकि है। लेकिन इससे बड़ी चुनौती हेमंत सोरेन के लिये ये होगी कि वे किस प्रकार इसका ठिकरा विऱोधी दल भाजपा पर फोड़ पायेंगे।
अबुआ आवास, पुरानी पेंशन, मरांग गोमके पारदेशीय छात्रवृत्ति, सौ यूनिट तक की फ्री बिजली जैसी योजनाओं को सरकार चुनाव में भुनायेगी
हेमंत सोरेन अपने पिछले सरकार के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण योजना जैसे सर्वजन पेंशन,. अबुआ आवास, सावित्री बाई फुले किशोरी समृद्धि, पुरानी पेंशन, मरांग गोमके पारदेशीय छात्रवृत्ति, सौ यूनिट तक की फ्री बिजली, हरा राशन कार्ड, धोती साड़ी समेत कई योजनायें लेकर आये। अब इस 4 महीने के छोटे से कार्यकाल में हेमंत की प्राथमिकता ये सुनिश्चित करने की होगी कि इन योजनाओं का कार्यान्वयन सही तरीके से हो, और लाभुकों को इसका लाभ मिल सके।
इन सबके अलावा इस बार के विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन सरकार को सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों को 75 प्रतिशत आरक्षण, महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण, आंगनबाड़ी सेविकाओं, सहायिका एवं शिक्षकों के लिये सेवा, शर्त और वेतनमान, पिछड़े वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण, शहीदों के जन्मस्थल को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने से संबंधित घोषणाओं को जमीन पर न उतार पाने के लिये भी काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा। वहीं, 4 महीने के छोटे से कार्यकाल में 200 यूनिट फ्री बिजली, अबुआ आवास, अबुआ स्वास्थ्य योजना, किसानों द्वारा लिये गये 2 लाख तक के लोन को माफ करना, 21 से 50 वर्ष तक की महिलाओं के खाते में हर महीने 1000 रुपये देना, जातिगत जनगणना कराना जैसी चंपई सोरेन सरकार की योजनाओं को धरातल पर उतारना हेमंत सोरेन सरकार के लिये बड़ा चुनौतीपूर्ण साबित होगा। हालांकि, अब आगामी विधानसभा चुनाव के दौरान देखना होगा कि इन चुनौतियों से हेमंत सोरेन कैसे निबटेंगे। पार्टी गठबंधन मिलकर क्या रणनीति तय करती है।